top of page

सितोपलादि चूर्ण

सितोपलादि चूर्ण

Sitopaladi Churna

     सितोपलादि चूर्ण (Sitopaladi Churna) एक आयुर्वेदिक औषधि है। प्राचीन काल के महान ग्रन्थ चरक चिकित्सा स्थान के राजयक्ष्मा अध्याय में इसका उल्लेख है। कुछ अन्य ग्रन्थ जैसे शारंगधर संहिता, गद निग्रह, योग रत्नाकर, भैषज्य रत्नावली आदि में भी इसका उल्लेख खांसी, कफ और बहुत सी अन्य बिमारियों के उपचार में है।

सितोपलादि चूर्ण का सेवन विभिन्न प्रकार के रोगों में लाभदायक है, जैसे आम सर्दी, सूखी-गीली खांसी, जुखाम, कफ, पेट संबंधी रोग, साइनोसाइटिस, ब्रोंकाइटिस, गले में खराश, बुखार, अस्थमा, बदन दर्द आदि। खास तौर पर बच्चों को बार बार आने वाले बुखार, टाइफाइड, मलेरिया आदि में भी इसका सेवन कराया जाता है।

सितोपलादि चूर्ण के घटक

सितोपलादि चूर्ण के प्रमुख घटकों को भिन्न भिन्न मात्राओं में मिलाकर इस औषधि को बनाया जाता है।

घटक द्रव्यमात्रा

मिश्री16 भाग

वंशलोचन8 भाग

पिप्पली4 भाग

छोटी इलायची बीज2 भाग

दालचीनी1 भाग

मिश्री

इसका आयुर्वेदिक नाम सितोपला है, जिसके कारण इस औषधि का नाम सितोपलादि है। इससे औषधि का स्वाद रुचिकर और ये भोजन के प्रति अरुचि और पाचन विकार को दूर करती है। औषधि के निर्माण में इसके 16 भाग मिलाये जाते हैं।

वंश लोचन

यह बांस की गांठों में पाए जाना वाला एक सफ़ेद पदार्थ है जो तासीर में ठंडा होता है। इसका उपयोग सर्दी, खाँसी के उपचार में किया जाता है और ये शरीर की प्रतिरोध क्षमता को भी बढ़ाता है। औषधि के निर्माण में इसके 8 भाग मिलाये जाते हैं।

पिप्पली

यह एक शक्तिवर्धक औषधि है जिसकी तासीर गर्म होती है। मुख्यतः इसका उपयोग खांसी, अस्थमा आदि में किया जाता है। औषधि के निर्माण में इसके 4 भाग मिलाये जाते हैं।

छोटी इलायची

छोटी इलायची मूत्र वर्धक है और खांसी, पाचन विकार, वायु विकार आदि में सहायक है। औषधि निर्माण में इसके 2 भाग मिलाये जाते हैं।

दालचीनी

यह एक पेड़ की छाल है और इसका मुख्य काम पाचन क्रिया सही करना, भूख बढ़ाना, आदि है। साथ ही यह सांस के रोगों में भी प्रभावी है। औषधि निर्माण में इसका 1 भाग मिलाया जाता है।

इन सभी घटकों को उचित मात्रा में मिलाकर एक हवाबंद बर्तन में रखा जाता है।

सितोपलादि चूर्ण के लाभ

सितोपलादि चूर्ण एक आयुर्वेदिक औषधि है जिसके उपयोग से विभिन्न प्रकार के रोगों में लाभ मिलता है जैसे सर्दी, खांसी-जुखाम, कफ, अपच, हाथों-पैरों में जलन, सुप्तजिव्हा, ब्रोंकाइटिस, अस्थमा, खून की कमी, पुराण बुखार, साइनोसाइटिस, टाइफाइड आदि।

  • खांसी-जुखाम में लाभदायक है।

  • श्वास संबंधी रोगों में लाभकारी है।

  • हाथों-पैरों की जलन में लाभदायक है।

  • अपच को दूर कर भूख को बढाती है।

  • बदन दर्द, थकावट, आलस्य, कमजोरी में लाभदायक है।

  • यह शरीर में कफ, पित्त और वात को ठीक करती है।

सेवन विधि और मात्रा

सितोपलादि चूर्ण को एक से तीन ग्राम के बीच में दिन में दो से तीन बार लेना चाहिए, भोजन के पहले या बाद में। इसको आधे चम्मच शुद्ध घी और आधे चम्मच शहद में मिलकर लिया जा सकता है। इसे केवल घी या शहद के साथ भी लिया जा सकता है।

वयस्क इसे तीन से पांच ग्राम के बीच में दिन में तीन बार लें सकते हैं, भोजन से पहले या बाद में; या चिकित्सक के परामर्श के अनुसार।

बच्चों को एक से तीन ग्राम देना चाहिए, दिन में दो से तीन बार तक; या फिर चिकित्सक के परामर्श के अनुसार।

दुष्प्रभाव

सितोपलादि चूर्ण किसी भी दुष्प्रभाव से रहित है।

परंतु कई बार ये देखा गया है कि यदि खाली पेट लिया जाए तो यह कुछ रोगियों में जठरशोथ को बढ़ा देता है। यह आयुर्वेदिक औषधि मधुमेह के रोगियों के लिए आदर्श नहीं है क्योंकि इसमें लगभग आधी मात्रा मिश्री की होती है, जो कुछ मधुमेह रोगियों के अनुकूल नहीं होती।

इसे लगातार एक वर्ष तक प्रयोग ना करें। हर दो से तीन महीने के बाद बीच में एक माह का अंतर रखें, या फिर जैसे आप का चिकित्सक कहे।

पूर्वोपाय

सितोपलादि चूर्ण को सदैव हवाबंद बर्तन में रखें। जब तक सीलबंद पात्र ना खोल जाए, इसे दो वर्ष तक रख सकते हैं। परंतु पात्र खोलने के बाद यही परामर्श है कि इसे दो महीने के अंदर प्रयोग करें।

bottom of page