top of page

अग्निमुख चूर्ण 

अग्निमुख चूर्ण के गुण-कर्म, प्रयोग, लाभ, मात्रा और दुष्प्रभाव

Agnimukh Churna Indications, Uses, Benefits, Dosage and Side Effects

          अग्निमुख चूर्ण का प्रयोग अग्नि वर्धक औषधि के रूप में किया जाता है। अग्निमुख चूर्ण मंदाग्नि में अच्छा काम करता है। भूख लगाता है और पेट की वायु का नाश करता है। इसका प्रयोग वात(Vata) और कफ (Kapha) प्रधान विकार में करना ही हितकर है। इस औषधि के गरम वीर्य होने से इसका प्रयोग पित्त प्रधान रोगों में न करना ही उचित माना जाता है। क्योंकि यह पित्त को बढ़ाता है और शरीर में गर्मी उत्पन्न करता है।

           अग्निमुख चूर्ण का उपयोग अजीर्ण की चिकित्सा के लिए मुख्य रूप से किया जाता है। इसके अलावा यह उदावर्त, मलावरोध, प्लीहा रोग, बादी बवासीर (अर्श रोग), पेट दर्द, पाशर्वशूल और गुल्म रोग आदि में भी लाभदायक होता है।

अग्निमुख चूर्ण के घटक द्रव्य एवं निर्माण विधि

भुनी हुई हींग1 भाग (12 ग्राम)

बच2 भाग (24 ग्राम)

पिप्पली3 भाग (36 ग्राम)

सोंठ4 भाग (48 ग्राम)

अजवायन5 भाग (60 ग्राम)

हरीतकी (हरड़)6 भाग (72 ग्राम)

चित्रक मूल की छाल7 भाग (84 ग्राम)

कूठ8 भाग (96 ग्राम)

संदर्भ: योग रत्नाकर, अजीर्ण चिकित्सा, अग्निमुख चूर्ण – १ – ६

निर्माण विधि

अग्निमुख चूर्ण को बनाने के लिए हींग को सबसे पहले भून लेना चाहिए। तत्पश्चात बाकी के सभी द्रव्यों को कूट लें। महीन कपड़े में छान कर प्रत्येक का चूर्ण बना लें। फिर भुनी हींग को चूर्ण कर सभी द्रव्यों को मिलाकर अग्निमुख चूर्ण बना लें।

आयुर्वेदिक गुण धर्म एवं दोष कर्म

अग्निमुख चूर्ण में उष्ण (गरम) जड़ी बूटियों का प्रयोग किया गया है। इसलिए यह गरम स्वभाव की औषधि है। यह वात और कफ शामक औषधि है। इसका प्रयोग मुख्य रूप से वात और कफ प्रधान रोगों में करना चाहिए।

औषधीय कर्म (Medicinal Actions)

अग्निमुख चूर्ण में निम्नलिखित औषधीय गुण है:

  • क्षुधा वर्धक – भूख बढ़ाने वाला

  • उदर शूलहर

  • पाचन – पाचन शक्ति बढ़ाने वाली

  • अनुलोमन – उदर से मल और गैस को बाहर निकालने वाला

  • दीपन – जठराग्नि को प्रदीप्त करता है

  • रुचिकर – भोजन में रुचि उत्पन्न करता है

  • प्लीहवृद्धिहर

चिकित्सकीय संकेत (Indications)

अग्निमुख चूर्ण निम्नलिखित व्याधियों में लाभकारी है:

  • मंदाग्नि

  • उदावर्त

  • अजीर्ण

  • मलावरोध

  • पेट में वायु

  • प्लीहा

  • अर्श

  • पेट दर्द

  • पाशर्वशूल

  • गुल्म

  • वात और कफ प्रधान विकार

मात्रा एवं सेवन विधि (Dosage)

अग्निमुख चूर्ण की सामान्य औषधीय मात्रा  व खुराक इस प्रकार है:

औषधीय मात्रा (Dosage)

बच्चे500 मिली ग्राम से 1.5 ग्राम

वयस्क3 से 6 ग्राम

सेवन विधि

दवा लेने का उचित समय (कब लें?)भोजन करने के बाद

दिन में कितनी बार लें?2 बार – सुबह और शाम

अनुपान (किस के साथ लें?)गुनगुने पानी

उपचार की अवधि (कितने समय तक लें)कम से कम 1 to 3 हफ्ते या चिकित्सक की सलाह लें

आप के स्वास्थ्य अनुकूल अग्निमुख चूर्ण की उचित मात्रा के लिए आप अपने चिकित्सक की सलाह लें।

अग्निमुख चूर्ण का दूसरा योग

अग्निमुख चूर्ण का एक और योग आयुर्वेदिक चिकित्सकों में प्रसिद्ध है। यह योग का भी प्रयोग अग्नि वर्धक औषधि के रूप में किया जाता है। यह योग पेट दर्द में अच्छा लाभ पहुँचाता है। इस योग में निम्नलिखित घटक द्रव्य होते है:-

सफ़ेद जीरा120 ग्राम

सोंठ60 ग्राम

सेंधा नमक180 ग्राम

काला नमक60 ग्राम

काली मिर्च60 ग्राम

नींबू सत्व60 ग्राम

पिपरमिंट1 ग्राम

निर्माण विधि: अग्निमुख चूर्ण के इस योग को बनाने के लिए सफ़ेद जीरा को सबसे पहले भून लेना चाहिए। तत्पश्चात पिपरमिंट और नींबू सत्व को छोड़कर बाकी के सभी द्रव्यों का महीन चूर्ण बनाकर कपड़े में छान लें। इसके बाद नींबू सत्व को महीन पीसकर इस चूर्ण में मिला दें। फिर सबसे आखिर में पिपरमिंट को खरल में मर्दन करके इस चूर्ण में अच्छी तरह मिला दें।

उपयोग: अग्निमुख चूर्ण के इस योग का प्रयोग खट्टी डकारें, जी मिचलाना, मुंह में पानी भर जाना, अरुचि, उदर वायु (पेट में गैस), पेट दर्द, भूख ना लगना, और मंदाग्नि में किया जाता है।

मात्रा और अनुपान: 1 से 4 ग्राम मात्रा में गर्म पानी के साथ।

प्रयोग विधि: इसका प्रयोग भोजन करने के बाद सुबह और शाम को करना चाहिए।

bottom of page